लगभग चालीस से पचास के दशक में केदारनाथ जैंसा था आज वैसा ही हो गया ..... !

जो हुआ वो बहुत बुरा हुआ, ये नही होना चाहिए था...लेकिन दोस्तो ये भी याद रहे हमें आज घटी इस घटना से सबक लेना भी जरुरी है। हिमालयी क्षेत्रों में अपने थोड़े से स्वार्थ के लिये और व्यक्तिगत विकास के लिये प्राकृतिक सँसाधनोँ का जिस निर्दयतापूर्ण ढँग से लगातार दोहन किया जा रहा है.. कही ना कही यह सब उसी का परिणाम है ।

देखिये जरा गौर से चालीस से पचास के दशक के केदारनाथ धाम की यह तस्वीर तब यहाँ सिर्फ गिनती की कुछ घास फूस की झोपड़ियां हुआ करती थी। क्या आम और क्या खाश सबके आशियाने यही थे । लेकिन देश स्वतंत्र हुवा महत्वकांक्षाएं भी बढ़ी इस सब के बीच आधुनिकता की दौड़ भी चलने लगी जिसके परिणाम स्वरूप चन्द सालों में ही आस्था के इस धाम में विकास रूपी कंक्रीट के जंगल ने एक आधुनिक नगर की शक्ल ले ली थी.

 लेकिन अब, .... आज की इस तस्वीर को भी देखिये और चालीस के दशक की ब्लैक एण्ड व्हाइट तस्वीर के साथ मिलान कीजिए उसी हालत में पाएंगे आप ओघड बाबा की समाधिष्ठ धाम को ।

क्या कहोगे इसे..... प्रकृति का प्रकोप या चालाक मनुष्य को प्रकृति का तमाचा ..... ?

इंसान प्रकृति से है प्रकृति इंसानो से नही, इस बात का हमे ध्यान रखना होगा।  प्रकृति से टकराव के परिणामो को समझना चाहिए। प्रकृति के सामने इंसान कुछ भी नही है।



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