दोस्तो परसों यानि बुधवार दिनाक 20 मार्च 2013 को चैत महीने की अस्टमी थी तो मुझे घर की याद आ गयी। अस्टमी जो हर महीने होती है हमारे भारतीय कैलेंडर के अनुसार।

मुझे याद है आज भी जब अस्टमी को घर मे पूजा होती थी । महीने की हर अस्टमी को सुबह घर मे ‘थान’ यानि घर मे बना हुआ ‘मंदिर’ की लिपाई पुताई होती थी। लाल मिट्टी से मंदिर की पुताई होती थी क्योंकि घर तो मिट्टी के ही बने होते थे, उन पर ‘कमेट’ यानि सफ़ेद मिट्टी(खड़िया) से डिजाइन बनाए जाते थे अर्थात ऐप्न डाले जाते थे। थान यानि मंदिर को घर का एक पुरुष सदस्य साफ करता अर्थात मंदिर के देवी देवताओ की मूर्तियो को नहलाया जाता था। संख बजता था और शाम को कुछ पकवान जैसे कि खीर और पूरी बनती थी और पहले मंदिर मे रखते थे तीमुल के पत्तो मे, दो पत्तो मे एक गाय के लिए और एक कौवे के लिए रखा जाता था। उसके बाद सबको दिया जाता था, हम लोगो को मिलता था। गाय और कौवे के हिस्से का अगले दिन सुबह होने पर दे दिया जाता था। कितने अच्छे थे वो दिन।

आज भी हमारे गाँव मे यानि हमारे पहाड़ (उत्तरांचल) मे ये होता है । ये परम्पराए आज भी जीवीत हैं लेकिन विलुप्त होने की कगार मे हैं। अपने इस ब्लॉग के माध्यम से मे इन रीति रीवाजों को बनाए रखने की कोशिस कर रहा हूँ। केवल इस ब्लॉग मे ये लिखने से ही भी ये नहीं होगा हमे इन रीति रीवाजों को सँजोये रखना होगा अर्थात इन्हे इनके मूल स्वरूप मे बनाए रखना होगा।

प्यारी जन्मभूमि हमरो पहाड़-उत्तरांचल पेज एक पहल है जो ये प्रयास करने की कोशिस कर रहा है कि जो भी भाई-बहन अपने काम काज की वजह से अपने पहाड़, अपने गाँव से दूर हैं उन्हे इस दूरी का आभास ना हो । बस यही एक प्रयोजन है इस पेज का कि भले ही हम अपने पहाड़ अपने गाँव से कितनी भी दूर क्यो ना हो लेकिन अपने रीति रीवाजों से अपने पहाड़ से मन से अर्थात दिल से तो दूर नहीं होंगे।

दोस्तो आप लोगो को ये भी बता दू कि आप लोग अपने कोई भी सुझाव अव्स्य दे । अगर कोई भूल चूक हुई हो तो गलती के लिए माफ करना।

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गोपू बिष्ट
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