मकर संक्रांति अर्थात उत्तराखंड के घुघुती त्यार या पुषूडिया को कुमाऊँ में भी हर जगह अपने अलग अलग रीति रिवाजों के साथ मनाया जाता है। कहीं ये पौष माह के अंतिम दिन को मनाया जाता है और कहीं ये मकर संक्रांति वाले दिन यानि की माघ महीने के पहले दिन मनाया जाता है।

पुषूडिया पूजनपहले दिन सुबह देवताओं के रूप में पाँच पत्थरों को स्नान आदि कराया जाता है, फिर टीका चन्दन लगा के उनकी पूजा आरती की जाती है। फिर उनके सामने घुघूत, पूरी, बाड़ आदि का भोग लगाया जाता है, और एक स्थान पे कौवे के हिस्से का रख कर कौवे को पुकारा जाता है...काले कौवा काले काले,....! इसे  "पुषूडिया पूजन" के नाम से जाना जाता है। बाद में प्रसाद उठा कर और उन पांचों पत्थरों को एवं उन्हें चढ़ाये गए भोग को धरती माता में गाड़ दिया जाता है। साथ ही एक पत्ते में गाय के हिस्से का भी रखा जाता है जो गाय को खिलाया जाता है।
घुघुती त्यार
फिर दिन में धूप में बैठ कर घर के कुछ सदस्यों द्वारा घुघूते बनाये जाते हैं, सब लोग अपने हिसाब से इन घुगूत को बनाते हैं ! इनका आकार हिन्दी के चार अंक के जैसा होता है, साथ ही इनमें अलग अलग आकार भी बनाये जाते हैं, जैसे डमरू, तलवार, ढाल, आदि !

जिस घर में बच्चे ज्यादा होते हैं, उनके अनुसार ये ज्यादा बनते हैं, क्यूंकी बच्चों को इनकी लम्बी लम्बी माला बना कर गले में डाल ने का एक शौक होता है। और कुछ लोग अपने पड़ोसियों और रिसतेदारों के हिसाब से भी इन्हें बनाते हैं, क्यूंकी ये फिर उनमें छोटी छोटी माला बना कर बांटे भी जाते हैं। वहीं पर धूप में ये सूखते भी रहते हैं, ये भी लोग आपस में एक दूसरे में व्यंग कहते रहते हैं, कि इनकी देख रेख करते रहना कहीं ये उड़ ना जायें! क्यूंकि इन्हें घुघूते के नाम से जाना जाता है, और हमारे पहाड़ में घुघुत एक पक्षी का नाम भी है जो बहुत ही सुंदर होती है! इस पक्षी की बोली बहुत ही वेदना पूर्ण होती है। कुछ देर धूप में सुखाने के बाद और छोटी छोटी माला में पिरोने के बाद इन्हें, शाम के समय तेल में तला जाता है। दिन के भोजन में इस दिन अधिकतर लोग मास की खिचड़ी बनाते हैं वो भी तांबे के तौले में ! जिसे माघ के महीने की खिचड़ी कहते हैं।

फिर अगले दिन प्रात काल बच्चे सुबह सुबह उठ कर गले में घुघुतों की माला पहनकर कौवे को बुलाते हैं, पूरा माहोल कौवे को बुलाने के बोलों से गुंजायमान हो जाता है.....!
घुघुती माला

लोग कौवे को बुलाने के लिए अलग अलग व्यंग भी कहते रहते हैं। जैसे:
काले कौवा काले काले। 
घुघुती माला खाले खाले !
ले कौवा बाड़, मीके दे सुनू क घड़। 
ले कौवा लगड़, मैं कै दी जा सुनु सगड़. 
बड तू ली जा, घड़ मैं कै दी जा. 
पूरी तू लिजा, छुरी मैं कै दी जा.
काले कौवा आ ले, घुघूती माला खा ले !

बागेश्वर उत्तरायणी मेला और घुघुती त्यार को ले कर ये कथा भी प्रचलित है। 

बागेश्वर‬ ‪उत्तराखंड‬ 14 जनवरी से शुरू होने वाले बागेश्वर के मशहूर उत्तरायणी मेला सांस्कृतिक के साथ-साथ ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जाना जाता है. प्राचीन समयानुसार उत्तरायणी मेले को लेकर एक खास कथा भी प्रचलित है. दरअसल, चन्द्रवंशी राजा कल्याण सिंह की कोई संतान नहीं थी. उन्हें बताया गया कि बागनाथ के दरबार में मन्‍नत मांगने से उन्हें अवश्य संतान प्राप्त होगी. ऐसा करने से उन्हें पुत्ररत्न की प्राप्ति हो गई और बेटे का नाम निर्भय चन्द्र रखा गया. पुत्र प्राप्ति से बहुत प्रसन्न रानी ने बच्चे को बहुमूल्य मोती की माला पहनाई. माला पहनकर बेटा बेहद प्रसन्न रहता था. एक बार जब बालक जिद करने लगा तो रानी ने उसे डराने के लिए उसकी माला कौवे को देने की धमकी दे डाली. बच्चा एक और जिद करने लगा कि कौआ को बुलाओ. रानी ने बच्चे को मनाने के लिए कौआ को बुलाना शुरू कर दिया.

बच्चा तरह-तरह के पकवान और मिठाइयां खाता था, उसका अवशेष कौओं को भी मिल जाता था. इसलिए कौवे बालक के इर्द-गिर्द घूमते रहते थे. फिर बेटे की कौओं से दोस्ती हो गई. वहीं घुघुती नामक राजा का मंत्री राजा के नि:संतान होने के कारण राजा के बाद राज्य का स्वामित्व पाने का स्वप्न देखा करता था, लेकिन निर्भय चन्द्र के कारण उसकी इच्छा फलीभूत न हो सकी. परिणामस्वरूप वह निर्भय चन्द्र की हत्या का षड्यंत्र रचने लगा और एक बार बालक को चुपचाप से घने जंगल में ले गया.

कौओं ने जब आंगन में बच्चे को नहीं देखा तो आकाश में उड़कर इधर-उधर उसे ढूंढ़ने लगे. अचानक उनकी नजर मंत्री पर पड़ी, जो बालक की हत्या की तैयारी कर रहा था. कौओं ने कांव-कांव का कोलाहल कर बालक के गले की माला अपनी चोंच में उठाकर राजमहल के प्रांगण में डाल दी. बच्चे की टूटी माला देखकर सब आशंकित हो गए तो मंत्री को बुलाया गया, लेकिन मंत्री कहीं नहीं मिला. राजा को षड्यंत्र का आभास हो गया और उन्होंने कौओं के पीछे-पीछे सैनिक भेजे. वहां जाकर उन्होंने देखा कि हजारों कौओं ने मंत्री घुघुती को चोंच मार-मार कर बुरी तरह घायल कर दिया था और बच्चा कौओं के साथ खेलने में मगन था.

निर्भय चंद्र और मंत्री घुघुती को लेकर राजा के सैनिक लौट आए. सारे कौवे भी आकर राजदरबार की मीनार पर बैठ गए. मंत्री घुघुती को मौत की सजा सुनाई गई और उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर कौओं को खिला दिए गए. लेकिन जब इससे कौवों का पेट नहीं भरा तो निर्भय चंद्र की प्राण रक्षा के उपहारस्वरूप विभिन्‍न प्रकार के पकवान बनाकर उन्हें खिलाए गए. इस घटना से प्रतिवर्ष घुघुती माला बनाकर कौओं को खिलाने की परम्परा शुरू हुई. यह संयोग ही था कि उस दिन मकर संक्रांति थी, इसीलिए उत्तरायणी मेले का मकर संक्रांति के दिन शुरू होने का खास महत्त्व है.

मान्‍यता के अनुसार, संक्रांति की सुबह जल्दी उठकर बच्चों को तिलक लगाकर, उनके गले में घुघुती की माला पहनाकर 'काले कौआ काले' कहने के लिए छत-आंगन या घर के दरवाजे पर खड़ा कर दिया जाता है. यह त्योहार बच्चों का ही त्योहार माना जाता है. बच्चे उस दिन बहुत खुश रहते हैं. अपनी माला में गछे, गेहूं के आटे में गुड़ मिलाकर घी या तेल में पके खजूरों को घुघुती का प्रतीक मानकर चिल्ला-चिल्ला कर गाते हैं- "काले कौआ काले, घुघुती माला खाले."


बागेश्वर उत्तरायणी कौतिक 2015 की विडियो

उत्तरायणी कौतिक की कुछ शानदार झलकियाँ

उत्तरायणी कौतिक 2016 की विडियो

उत्तरायणी कौतिक 2016 की कुछ शानदार झलकियाँ

दोस्तों कैसा लगा आपको ये बताना जरूर। और साथ ही हमारे फेस्बूक पेज को भी LIKE करना न भूलें।
प्यारी जन्मभूमि हमरो पहाड़ - उत्तराँचल , और हाँ दोस्तो पहाड़(गाँव) से संबन्धित विडियो देखने के लिये हमारे 'ठेठ पहाड़ी यू ट्यूब विडियो चैनल' को जरूर देखें आपको अच्छा लगेगा।
हमारा विडियो चैनल: http://goo.gl/tjuOvU


धन्यवाद !

3 Comments

  1. Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका।

      Delete
  2. Very Nice site and it is helpful info.
    Thanks and keep sharing. For Latest "Bageshwar News" visit to www.bageshwarnews.com here

    ReplyDelete

Post a Comment

Previous Post Next Post