एक बार पढ़ के बताना जरूर दगड़ियों !!
पहाड़ के गाँवों में आकर देखो और पुछो कि ये भूकंप (Earthquake) क्या है ?
गाँव के बुड़े बुजुर्ग यही कहंगे कुछ नहीं हो "भीं....चाल" ठेरा ये मतलब धरती की चाल(चलना) । ना ही वो इस से डरते थे और ना ही उन्हें ज्यादा नुकसान की आसंका ही होती थी वो इसलिये कि उनके बनाए हुये लकड़ी, पत्थर और मिट्टी के गारे के वो घर इस प्राकृतिक के चाल के अनुकूल होने वाले ठहरे। इसीलिए प्राकृतिक आपदा नहीं प्रकृति कि एक करवट कही जाने वाली ठहरी ये !
आपदा तो आधुनिक शब्दावली का नाम हुआ वो इसलिये क्यूंकि आज के समय में प्रकृति द्वारा ली जाने वाली इस छोटी सी करवट से आधुनिक जीवन शैली में काफी उथल पुथल हो जाती है। ज्यादा नुकसान और डर भी आधुनिक मनुष्य को ही है घर में भी और घर के बाहर भी। भले ही कितने ही आधुनिक सयंत्रों से जांच परख कर ऊंचे ऊंचे डिजाइन दार मकानों बिल्डिंगों को बनाते हैं फिर भी थोड़ा सा हिलने में बाहर भागने को मजबूर हैं क्यूंकि मकान या बिल्डिंग्स का भरोसा नहीं कब धड़-धड़ा कर गिर जाये।
अगर यकीन नहीं तो खुद अपने गाँव देहात में पुराने समय के लकड़ी पत्थर के बने हुये घरों में रहने वाले लोगों से जरा पुछो कि भींचाल या भूकंप आने के दरमियाँ वो घरों से निकले या नहीं। उन्हें डर लगा या नहीं....कुछ ज्यादा नुकसान तो नहीं हुआ ?.....मुझे पूरा विश्वास है ज़्यादातर उनका उत्तर होगा !! नहीं !!
इसी के विपरीत उनसे भी जरा पुछो जो आधुनिक प्रणाली से बने घरों में रह रहे हों चाहे कहीं भी हों गाँव या शहर.....उनका जवाब होगा केवल !! हाँ !!
क्या पहले ये भूकंप नहीं आते थे ? क्या आज का मानव कमजोर है ? या क्या पहले के मनुष्य में मजबूती थी खुद में भी और उसके कार्यों में भी और उसकी सोच में भी ?
आधुनिक मानव को खुद से ज्यादा विश्वास मशीनों पर है खुद से ज्यादा मशीनों के माध्यम से सोचता है खुद से ज्यादा अपनी निर्जीव संपत्ति को खोने की चिंता है इसलिये वो डरपोक है।
पोस्ट सर्वाधिकार सुरक्षति by Gopu Bisht
दिनांक: 07/02/2017
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