'स्वांल पथाई' कुमाऊँ की एक अनूठी रश्म है! यह रश्म उत्तराखंड के कुमाऊँ मण्डल क्षेत्र के अधिकांस हिस्सों में प्रचलित है। यह रश्म जनेऊ संस्कार और शादी में आयोजित की जाती है।

स्वांल या स्वाल पथाई
पहले के समय में या कहीं कहीं अब भी जब किसी का द्वि दिवसीय जनेऊ संस्कार पुरानी रीति रिवाजों के आधार पर किया जाता था या किया जाता है उस अवसर पर प्रथम दिन यानि की 'ग्रहजाग' वाले दिन स्वांल पथाई की यह रश्म निभाई जाती थी या है। पर अब अधिकांस जगहों पर इन पुराने रीति रिवाजों के आधार पर जनेऊ संस्कार बहुत कम देखने को मिलता है इसलिये स्वांल पथाई की यह रश्म भी अब केवल शादीयों के अवसर पर ही देखने को मिलती है।

इस रश्म में घर और गाँव की महिलाओं द्वारा सर्वप्रथम आटे को गूँथ कर उस से गणेश जी की प्रतिमा और स्वस्तिक बनाया जाता है और फिर पुरियाँ बेली जाती हैं जो कुछ समय बाद पकाई जाती हैं जिन्हें "स्वांल" कहा जाता है। ये स्वांल और पुरियों से थोड़ा सक्त होती हैं।

शादी के अवसर पर यह रश्म दुल्हा और दुल्हन दोनों के वहाँ होती है। शादी के पहले दिन इस रश्म का आयोजन किया जाता है। जिसमें गाँव की महिलाएं और घर की महिलाएं हिस्सा लेती हैं। स्वांल को पकाने के बाद हल्वे(आटे का) के साथ पूरे गाँव में बांटा जाता है।

हमारे पहाड़ की ये लोक परम्पराएँ हमारी असली पहचान हैं।

दोस्तों 'स्वांल पथाई' के बारे में जितना मैंने देखा और सुना है उतना आप लोगों के सामने प्रस्तुत कर दिया है....आप भी अगर कुछ इस से अधिक इस खुबसूरत रिवाज के बारे में जानते हैं तो कृपया हमारे साथ जरूर सेयर करें।

'स्वांल पथाई' कुमाऊँनी शादी की एक अनूठी रश्म पूरी विडियो




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