Khatarwa 'खतड़वा' पर्व उत्तराखंड के कुमाऊँ मण्डल में विशेष रूप से घर के पालतू जानवरों (गाय, भैंस, बैल, बकरी आदि) को होने वाले रोगों से सुरक्षित रखने की कामना हेतु मनाया जाने वाला पर्व है। इस दिन जानवरों के गोठ(रहने की जगह) की सुबह से ही साफ-सफाई की जाती है जानवरों को भी नहलाया धुलाया जाता है, उनके सामने हरी हरी घास डाली जाती है...।
दोपहर के बाद घरों के कुछ सदस्य(विशेष रूप से बच्चे) एक स्थान पर जाते हैं जो पहले से ही निश्चित होता है, जहां पर वो पहले तो अपने अपने घर के पालतू जानवरों के रहने के स्थान सा छोटा सा डिज़ाइन बनाते हैं...छोटे छोटे पत्थरों, लकड़ियों और रामबांस के कोमल कोमल पत्तों से फिर उसके अंदर पत्थर के छोटे छोटे जानवर रखते हैं और फिर उनके अंदर हरी हरी घास भी फैकी जाती है।
जब सभी लोगों के इस तरह के घर बन जाते हैं तो फिर सब लोग इकट्ठा हो कर पास में ही एक जगह पर लकड़ी, सुखी घास और सुखी झड़ियों को इकट्ठा करते हैं, जिस से एक विशाल पुतले का रूप दिया जाता है।
उसके बाद शाम को जब अंधेरा होने लगता है तब पूरे गाँव के हर घर से एक सदस्य अपने घर पर 2-3 भांग के डंडे पर एक एक कद्दू का फूल और एक एक छोटी सी बिच्छू घास बांध कर उन्हें क्रमश एक घर की छत पर, एक जानवरों के गोठ में और एक घर के पास में जहां पर जानवरों का गोबर इकट्ठा होता है वहाँ पर रखते हैं।
फिर घर से एक मशाल जिसे पहाड़ी भाषा में "रांख" कहते है वो बना कर और उस पर भांग के डंडे पर एक छोटी सी बिच्छू घास एवं कद्दू का एक फूल बांध कर, उस मशाल को सर्वप्रथम अपने घर के गोठ(पालतू जानवरों के निवास) में जानवरों के ऊपर से नजर उतार कर, साथ में एक-एक दो दो हरी ककड़ी और नमक ले कर उस पुतले वाले स्थान पर पहुँचते हैं।
फिर पहले तो जो वहाँ पर बच्चों द्वारा छोटे छोटे घर बनाए होते हैं( जैसा ऊपर चित्र में दिया है) उन पर भी मशाल से नजर उतारी जाती है। उसके बाद जब सब लोग आ जाते हैं कहीं कहीं तो सभी लोग कुछ लोग गीत गाते हुये उस पुतले के चक्कर लगते हैं और धीरे धीरे सभी लोग अपनी अपनी मशाल से उस पर आग लगा देते हैं और उस पर ककड़ी के टुकड़े चड़ा देते हैं और सभी लोग आपस में भी ककड़ी को बांटते हैं फिर उस स्थान से जली हुयी लकड़ी के कुछ टुकड़े ला कर गोठ में रख देते हैं। और साथ में सभी घर के सदस्यों को प्रसाद स्वरूप ककड़ी बांटते हैं।
दोस्तों ऐसा होता है मेरे गाँव में 'खतड़वा' पर्व जो हर साल अश्विन माह के प्रथम दिन अर्थात संक्रांत को मनाया जाता है। क्या आपके गाँव में भी इसी तरह से होता है बताएं।
जैसा कि हम सब जानते हैं Khatarwa (खतड़वा) के विषय में कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा समाज में एक गलत धारणा को जन्म दिया गया है। जिसके बावजूद राज्य सरकार(उत्तराखंड) द्वारा इस पर रोक लगा दी गयी है। पर जहां पर अच्छी सोच है वहाँ आज भी लोग इसे मानते हैं।
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बिच्छू घास के फायदे के बारें में भी बताएं लेख अच्छा था। आप इसे भी देख सकते है। बिच्छू घास के बारे में
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