प्राचीन काल में भी पहाड़ के लोग काम की तलाश में दूर दराज, और मैदानी क्षेत्रो में जाया करते थे । कुछ समयावधि के पश्चात पुनः पहाड़ लौट आया करते थे । उनके द्वारा अर्जित धन से पहाड़ की सम्म्पन्न्ता निरंतर बढ़ रही थी ।

परन्तु आज जो भी सैलपुत्र पहाड़ से पलायन करता है पुनः पहाड़ की ओर लौटकर नहीं आता । फलस्वरूप आज की नयी पीढी अपनी भाषा से भी अपरिचित हो गयी है ।
स्वजनों आओ जानते हैं आज कुछ देवभूमि के पहाडो ,मैदानों ,खेतों ,झरनों ,घरों के आस पास को किस नाम से जाना जाता है ।
पहाड़ी बोली के कुछ शब्द हिन्दी अर्थ के साथ !

स्यर- दलदल
उप्राऊ-बिना सिंचाई के जमीन
तपड-समतल जमीन
उखड-बंजर जमीन
बाड -सब्जी उगाने वाला खेत
गैर- घाटी
कमिन-कमाया हुआ खेत
तैल-जहा सूर्य की सीधी रौशनी पड़ती है
स्यौ-जहां सूर्य की रौशनी नहीं पहुचती
तल्ला -निचला
मल्ला-ऊपर
बगड़-नदी किनारे की जमीन
धार-पहाड़ की पीठ, खड़ी चड़ाई
छिड़ -जलप्रपात
घट- पनचक्की
कराव- पहाड़ की ढालू जमीन
डाना-ऊंचे पहाड़
गूल-छोटी नहर
बीसी- एक एकड जमीन
रौ -नदी का गहरा हिस्सा
ताल-तालाब
बाखली-घरों का समूह
नाली-आनाज का तौल
खाव-छोटा जलकुंड
गधेरा-छोटी बरसाती नाला
रौल-छोटी नदी
गाड़-नदी
ग्वाल - गाय बैलों के साथ जंगल जाना
छिन- पहाड़ी पे एक ऊंचा चौड़ा स्थान
संजायत-जो बस्तु बंटी न हो
पार- उस साइट
वार- इस साइट
यां- इधर
वां- उधर
भीड़- दीवाल
तिरौड - किनारा
ओड़- बँटवारे का निशान
पाख- घर की छत
देली- घर की दहलीज
उखौव- ओखली
छाज- खिड़की
द्वार- दरवाज़
मोव- मकान, मकान के आगे का हिस्सा
हौव- हल
बल्द- बैले
नान- छोटा
ठूल-बड़ा ........इत्यादि !
दोस्तों पहाड़ से भले ही दूर चले जाओ पर पहाड़ की भाषा- संस्कृति से कभी दूर मत जाना। हमेशा अपने पहाड़ से रिश्ता बनाए रखना।
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