वैसे तो हिन्दू वर्ष के अनुसार माघ का यह महिना काफी पवित्र माना जाता है। माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी, सरस्वती पंचमी और श्रीपंचमी भी कहते हैं। पर श्रीपंचमी का यह त्योहार उत्तरांचल के कुमाऊँ मण्डल में बड़े ही हर्षो-उल्लास के साथ मनाया जाता है। 


हमारे पहाड़ (उत्तरांचल) के विशेष कर कुमाऊँ क्षेत्र में इस दिन जौ की पत्तियाँ खेतो से लाकर देवी-देवताओं को चढ़ाते हैं तथा हरियाले की भाँति सिर पर रखते हैं। घर की महिलाएं हरेले की तरह ही अपने पति, बच्चों के सिर में जौं की पत्ती डालते हैं और लड़कियां अपने माँ-बाप, भाई बहन, और सगे संबंधियों के सिर में डालती हैं। हर घर में पकवान भी बनाये जाते हैं। बहू-बेटियाँ अपने माईके भी जाती हैं।लड़कियां इस दिन नाक-कान भी छिदवाती हैं। 




इस दिन से हमारे पहाड़ में होली की शुरुवात भी हो जाती है। कुमाऊँ क्षेत्र के ही कुछ हिस्सों में आज के दिन 'जौं की पत्ती' को गाय के गोबर के साथ टीका चन्दन कर के घर की देली(दहलीज) और खिड़कीयों पर लगाया जाता है। इसे जौं बाली या मौव बाली भी कहा जाता है। आप चित्र में देख सकते हैं।


आज से ही कुमाँऊ मण्डल में अलग अलग जगह 'बैठकी होली' गानी भी शुरू हो जाती है, जो खड़ी होली शुरू होने के दिन यानि कि इकाइशी अर्थात एकादशी के एक दिन पहले तक चलती है।

पूरे भारत वर्ष में हिन्दू सास्त्रों के अनुसार इस दिन विध्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। प्राचीन समय से इसे माँ सरस्वती के जन्मदिन के रूप में माना जाता है। बसंत ऋतु की शुरुवात हो जाती है इस दिन से और बसंत ऋतु के आते ही प्रकृति की सुंदरता और भी खिल जाती है। पेड़ों और फसलों पर फूलों की बहार आने लगती है। सरसों के खेतों में सुनहरी चमक फैल जाती है, रंग बिरंगी तितलियाँ और मधुमाखियाँ भिन भिनाने लगती हैं।

आप सभी को वसंत पंचमी, सरस्वती पंचमी और श्रीपंचमी की ढेर सारी शुभकामनायें। 

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