बैसाखी पर्व को हमारे देश के सभी प्रान्तों में अलग अलग नामों से जाना जाता है जैसे, बिखौती, बीहू, बैसाखी,। हर साल ये पर्व मुख्य रूप से गेहूं की फसल पकने के स्वागत में आयोजित किया जाता है।
ऐसे ही देश के एक सुंदर से प्रान्त यानि देवभूमि उत्तरांचल में इस पर्व को बिखौती के नाम से जाना जाता है| आज के दिन घर पर पकवान भी बनाए जाते हैं। जैसे पूरी, खीर, साई (चाँवल का हलवा) इत्यादि।
विषुवत इसलिये कहा जाने वाला ठहरा क्यूंकि आज के दिन हमारे पहाड़ के गाँव घरों में अलग अलग मान्यताओं प्रथाऔं के हिसाब से रोग आदि से बच्चों को दूर रखने के लिये प्राचीन समय से चली आ रही कुछ प्रथाएँ मानी जाती हैं।
कहीं कहीं आज के दिन जौं की बाली नाभि में लगा कर विष झाड़ा जाता है तो कुछ जगहों पर बिखौती के इस त्यार (पर्व) पर 'ताव' हाल ने का रिवाज है इस रिवाज में लोहे के पतले से डंडे को आग में गरम किया जाता है और जब वो लाल हो जाता है तो उस से शरीर में पाँच या सात बार हल्के से टच किया जाता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से शरीर में होने वाले रोग नष्ट हो जाते हैं, बीमारियों का खतरा नहीं रहता है। गाँव में बुजुर्ग लोग अक्सर बच्चों को बीमारियों से दूर रखने के लिये किया करते थे...कुछ जगहों पर अब भी शायद हो सकता है किया जाता हो। यह भी हो सकता है कि अलग अलग स्थानो पर इसे कुछ अलग नाम से जाना जाता हो। ये सारी चींजें अब समाप्त होने को हैं मुश्किल से ही कहीं भी देखने को मिलती हैं।
इस दिन उत्तरांचल के कुमाऊ मण्डल में कई स्थानों पर मेला लगता है उनमें से ही एक प्रमुख मेला है अल्मोड़ा के द्वारहाट में स्याल्दे बिखोती का भव्य मेला जो बहुत ही चर्चित है। कहीं कहीं तो बिखौती के इस पावन पर्व पर संगमों पर नहाने का भी रिवाज है आज के दिन लोग बागेश्वर, जागेश्वर, रामेश्वर संगमों पर स्नान करने भी जाते हैं ।
इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है । ये कहा जाता है कि जो उत्तरायणी पर नहीं नहा सकते, कुम्भ स्नान के लिए नहीं जा सकते उनके लिए इस दिन स्नान करने से बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है। हर संगम पे भी इस दिन मेले का सुंदर नजारा रहता है।
स्याल्दे बिखौती का ये प्रसिद्ध मेला प्रतिवर्ष वैशाख माह के शुरू में आयोजित होता है । द्वाराहाट से आठ कि.मी. दूर प्रसिद्ध शिव मंदिर विभाण्डेश्वर में इस मेले का आयोजन होता है। इस मेले को भी 2 भागों में बांटा गया है। पहला चैत्र मास की अन्तिम तिथि को विभाण्डेश्वर मंदिर में तथा दूसरा वैशाख माह की पहली तिथि को द्वाराहाट बाजार में ।
द्वारहाट के इस स्याल्दे कौतिक (मेले) में नेपाल भूटान आदि जगहों से भी भारी मात्रा में लोग आते हैं| स्याल्दे का ये मेला ब्यापारिक दृष्टि से भी बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है| झोड़े चाँचरी गा कर दूर दूर से आए हुए लोगों का मनोरंजन किया जाता है। सभी लोग अपनी अपनी कलाओं का भी यहाँ पर प्रदर्शन करते हैं। बहुत से नए कलाकार भी यहाँ अपनी कलकारी दिखते हैं या सुनाते हैं जिस से सभी लोगों का मनोरंजन हो जाता है|
बहुत समय पहले कुमाऊ के प्रसिद्ध गायककार श्री गोपाल बाबू गोस्वामी ने इस मेले की शोभा में अपने मधुर स्वरों से चार चाँद लगाया था। उनके द्वारा इस मेले पर दर्शाया हुआ एक गीत आज भी बहुत ही प्रसिद्ध है। इस गीत के बोल कुछ इस प्रकार से हैं...... “हे अलख्ते बिकौती मेरी दुर्गा हरै गे, हे दुर्गा चाने चान मेरी कमरे पटै गे।”
इस गीत में ये दर्शाया गया है कि द्वारहाट के स्याल्दे मेले में एक पति-पत्नी आये हुए हैं वहां पत्नी अपनी पुरानी सहेलियों के मिल जाने पर उनसे बातों में मशगूल हो जाती है और पति को लगता है कि वह खो गयी है और उसी को ढूंढते हुए वो वहाँ लोगों से पहले तो ये कहता है...... “हे अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे
अले म्यार दगाड़ छि यो म्याव में, अले जानी काँ शटिक गे। येल म्यार गाव गाव गाड़ी ह्यालो, मी कॉ ढूढ़ँ इके इतु खूबसूरत छो यो, क्वे शटके ली जालो। क्वे गेवाड़िया या द्वार्हटिया तो म्यार ख्वार फोड़ हो जाल दाज्यू देखो धैं तुमिल कैं देखि ?” फिर बहुत देर ना मिलने के बाद वो गीत गाने लगता है जो (देवनागरी लिपि में)कुछ इस तरह से है......
“हे अलख्ते बिकौती मेरी दुर्गा हरै गे, दुर्गा चाने चान मेरी कमरे पटै गे।”
तुमुले देखि छो यारो बते दियो भागी….रंगीली पिछोड़ी वीकी बुटली घागेरी,
आंगेड़ी मखमली दाज्यू दुर्गा हरै गे
मेरी हंसीनी मुखड़ी मेरी दुर्गा हरै गे….सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे,
खित खित हँसुण वीको, तुर तुरी आँखी
बुलाणो रसीला दाज्यू बिणाई जे बाजी,
कल कली पाई नाचेछे दुर्गा हरै गे
मेरी रीतु की आंसूई मेरी दुर्गा हरै गे…..सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे
दुर्गा मी के खाली मै टोकलि
गुलाबी मुखड़ी वीकी काई काई आंखि
गालड़ी उगाई जैसी ग्यु की जै फुलुकी,
सुकिला चमकाना दांता मेरी दुर्गा हरै गे….हाय सार कौतिक चान मेरी कमरा पटे गे
अल्बेर बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे
दुर्गा चाने चाने मेरी कमरा पटे गे
हे…………दाज्यू तलि बजारा मलि बजारा द्वाराहाटा कौतिक म
तलि बजारा मलि बजारा सार कौतिक में ढूंढ़ई
हाय दुर्गा तू काँ मर गई पाई गे छे आंखी,
हाय दुर्गा…….तू काँ मर गे छे पाई गे छे आंखी।
मेरी दुर्गा हरै गे,
ये अल्खते बिखौती मेरी दुर्गा हरै गे।
अब मैं कसिक घर जानू दुर्गा का बिना,
कौतिक्यारा सब घर नैई गयी, धार नै गो दिना,
म्येर आंखी भरीण लेगे दाज्यू किले हसणो छ तामी,
मेरी दुर्गा हरै गे
सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे
ओ हिरदा सार कौतिक चाने मेरी कमरा पटे गे,
हिरदा दुर्गा हरै गे, हिरदा दुर्गा हरै गे ,
बतै दे दुर्गा हरै गे, हिरदा दुर्गा हरै गे, हिरदा दुर्गा हरै गे.
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स्याल्दे बिखौती की विडियो देखने के लिए हमारी ठेठ पहाड़ी यूट्यूब विडियो चैनल को देखें उसमें आपको कौतिक की विडियो भी मिलंगी।
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हमारे पहाड़ गाँव की "विषुवत संकांत" या "बिखौती त्यार" की बधाई ठहरी आप सबको।
धन्यवाद।
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