"लाल मजेठी और जन्माष्टमी व्रत"
होय महाराज ऊई नानछ्नानु दिनानों बात करन लागि रयूं आज। दिन ले छ बार ले छ और मौक ले छ। आजकल त सबे त्यार ब्यार (त्योहार, पर्व) मनखी हिसाब ले द्वि द्वि हून भै गईं किलै की विचार अलग अलग है गईं। खैर क्वे बात नि भई हम तो जास छ्याँ उसै रुन हो महाराज।
(अब हिन्दी कुमाऊँनी मिश्रिती लिख रहा हूँ....क्यूंकि बहुत से मित्रों को शायद समझने में आशनी हो)
बल आज और भोल(कल) श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व है, लेकिन वो रौनक वो माहौल नहीं ठहरा हो बिल्कुल भी जो होने वाला ठहरा गाँव घरों में। फ़ैन्सी ड्रेस का टैम ठैरा आजकल भगवान ज्यू ले फ़ैन्सी है गईं बल, चस्म हस्म(चस्मा) पहनने लग गए ठहरे, टीवी सिरयलों के माफिक होने लग गया ठहरा अब । खैर छोड़ो.....मैं कुछ और भूली बिसरी यादों को सँजोके लाया हूँ।
हमारे पहाड़ के गाँव में वैसे तो सभी जानते हैं मेल मिलाप और बड़ी ही सुंदरता के साथ हर पर्व, त्योहार, आयोजन सुख-दुख में शामिल हुआ जाता है। अच्छे से याद ठहरा महाराज जब हम नानतीन(छोटे बच्चे) थे तो श्री कृष्ण जन्माष्टमी को भी बड़े ही धूम धाम से मनाने वाले हुये। इस दिन गाँव में किसी एक घर पर या 7-8 घरों के मोहल्ले के एक घर में श्री कृष्ण जन्माष्टमी की पूजा होने वाली ठहरी। सभी व्रत वाले काका काखी, आमा बूबू, दद्दा दीदी, भुला भुली वहीं पर एकत्रित होते थे भजन कीर्तन, झोड़ा-चाँचरी आदि होने वाले ठहरे।
बामण ज्यू का टैम ठहरा रात 11-12 बजे आना और फिर पूजा-पाठ होने वाली ठहरी और व्रत टूटने वाला हुआ।
खास तौर पर इस दिन हमारी बहनें और सभी व्रत वाली महिलाएं "लाल मजेठी" की पत्तियों की मेहंदी लगाने वाली ठहरी अच्छा शगुन माना जाने वाला हुआ इस दिन मजेठी(पहाड़ी मेहँदी) की मेहंदी लगाना। यह हाथों में गाड़ी लगे करके इसमें दाड़िम के रस को डाला जाने वाला हुआ या कुछ और माल्टा-नीबू के दानों का खट्टा। मुझे अच्छे से याद है महाराज हम लोग भी अपनी दीदी लोगों के साथ मजेठी पीस कर खूब लगाने वाले ठहरे..... पर शायद आजकल के पहाड़ी बच्चे मजेठी के बारे में जानते हों। बता देना चाहता हूँ पहले हमारे गाँव घरों में इसी मजेठी की मेहँदी लगाई जाती थी बाजार वाली कोई नहीं जानता था।
जन्माष्टमी के व्रत के दिन खास तौर से "दाड़िम के पत्तों" का पत्र भगवान को चड़ाया जाता था। व्रत के दिन उखाड़ फोड़ खाने वाले हुये, दाड़िम खाने वाले हुये, किसी के क्याल(केले) पके हों तो दूध क्याल खाने वाले ठहरे क्यूंकि इन्हीं दिनों ये फल भी तैयार हुये रहने वाले हुये। आजकल तो अब व्रत वाले चिप्स भी हैं बल, और भी क्याप क्याप। सोचने को मजबूर हो जाता हूँ आहा कतुक भाल(अच्छे) दिन ठहरे वो। आप लोग खुद ही सोच लो महाराज कितने आगे निकल गये हैं ना हम.....वो सब छोड़ कर।
"अन्यार कतुकै हौवो...उज़्यावैकि आस तो हुनेर भै" ~ श्री ज्ञान पंत
{आप सभी को श्री कृष्णजनमाष्टमी की भौत भौत शुभकामनायें ठहरी, जय श्री कृष्णा}
पोस्ट by Gopu Bisht (ठेठ पहाड़ी)
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भोत भल लेखछा हो महराज।
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