दोस्तो जैसा कि आप जानते ही होंगे पहले के समय में यानि कि आज से कम से कम 25-30 साल पहले गाँव घरों में ज़्यादातर संयुक्त परिवार होते थे। परिवार में ज्यादा सदस्य होते थे। और उस समय गाँव घरों में अनाज जैसे कि गेहूँ, चाँवल, मड़ुआ, मक्के को पीसने के लिए कोई इलेक्ट्रोनिक चक्की या डीजल वाली चक्की नहीं होती थी।

 उस समय लगभग सभी घरों में ये घरेलू चक्की यानि ‘जातर और दवनी’ होते थे। ये पत्थर के गोल चक्के होते थे। पत्थर के होने की वजह से ये काफी भारी भी होते थे। इसलिये इन्हें एक स्थान पर ही स्थापित कर दिया जाता था घर के किसी कोने में। अधिकतर सीडी के नीचे ये स्थापित किए जाते थे जिस से कि जगह का भी उपयोग हो जाये।

 जातर और दवनी ये दोनों दिखने में होते तो एक जैसे ही हैं लेकिन आकार में इनमें अंतर होता था। जातर बड़ा होता था और दवनी आकार में छोटा होता था।


 ‘जातर’ जो कि आकार में बड़ा होता था वो गेहूं, चाँवल, और मक्का को पीसने के लिए काम में लाया जाता था अर्थात आटा बनाने के लिए इसका उपयोग होता था। इसे एक साथ दो-दो लोग भी चलाते थे। जिस से एक-दूसरे की मदद के साथ-साथ जल्दी भी हो जाती थी। जैसे कि फोटो मे दिख रहा है ये गोल आकार के होते थे, इसके ऊपर वाले हिस्से में बीच में एक छेद होता है और एक किनारे पर एक हेंडल जो कि लकड़ी का होता है बना होता है। जिसे दो व्यक्ति आसानी से पकड़ कर घूमा सकते हैं। नीचे वाले हिस्से के बीच में एक छोटी सी लकड़ी का कील की तरह बना होता था। जो ऊपर वाले हिस्से को अपने साथ बनाए रखता था।

‘दवनी’ जो कि आकार में छोटा होता था वो दाल जैसे कि मसूर, भट्ट(सोयाबीन), मास(उड़द) आदि को पीसने के काम आता था। दवनी को कहीं भी ले जाया जा सकता था क्योंकि वो आकार में छोटा होने के कारण उतना भारी नहीं होता था। जैसा कि आप फोटो में देख ही रहे होंगे। आज भी गाँव घरों में ये देखने को मिलते हैं पर अब इनका उपयोग ज्यादा नहीं होता।

 ये हमारी कुछ खास धरोहरें हैं जिन्हें हमें सँजो के रखना चाहिये भले ही इनका उपयोग हम करें या ना करें । दोस्तो कैसा लगा मेरा ये पोस्ट आपको बताइयेगा जरूर ।

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इस पोस्ट को पढ़ने में अपना बहुमूल्य समय देने के लिए आपका दिल से धन्यवाद !

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