यूं तो दोस्तो पूरा उत्तरांचल पर्यट्न के लिहाज से बहुत ही प्रसीद्ध है। फिर भी इसके पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले को ही इसकी खूबसूरत वादियों के कारण छोटा कश्मीर भी कहा जाता है। जहां रामगंगा, सरयू, नरगूल एवं पातालगंगा बहती हैं। सरयू नदी और रामगंगा के बीच वाले सम्पूर्ण इलाके को संस्क्रत में गंगावली कहा गया है। गंगोली इलाका भी इसे कहा जाता है।
यहाँ के पर्वत काफी ढलान लिये हुए हैं जल संचय की सम्भावनाऔं के कारण यहाँ की भूमिं उपजाऊ है । इस गंगावली इलाके का पर्यावरण सदा हरा भरा व सुरम्य रहता है। यहां की पहाड़ियां कुमांऊँ मडंल की अन्य पहाड़ियों से पक्की हैं। सड़कैं दूर दूर, पर बरसात में कम बाधित रहती हैं।
खेती-बाड़ी के लिहाज से भी ये क्षेत्र काफी अनुकूल है। यहां प्रायः सभी तरह की खेती की जाती है। फल फूल और सब्जियों में इधर आम तौर पर (पहाड़ी नाम) केला, निम्बू, अखोड़, दाणिम, रीखू, नारिगं, आदो, काफल, किल्मोड़ो, बेडु हिसालू , बा`ज, बुरा`श, आम, अमरूद, तोरी, काकड़, आरू, और खुबानी होती हैं।
यहाँ का मुख्य पर्यटन स्थल चौकोड़ी है जहां कुमाऊँ मडंल विकास निगम के गेस्ट हाउस एवं प्राइवेट रिजार्टस् है, जो पर्यटको की सुख-सुभीधा को ध्यान मे रखकर बनाए गए हैं। इधर बेरीनाग और चौकोड़ी के चाय के बागान भी बहुत ही प्रसिद्ध हैं।
यहाँ पाताल भुवनेश्वर की गुफा धार्मिक पर्यटन स्थलों में मुख्य है जो पिथौरागड़ जिले के गंगोलीहाट के करीब है। गंगोलीहाट एक तहसील है जो पिथौरागड़ जिले के पश्चमी भाग में स्थित है। पाताल भुवनेश्वर की गुफा इधर से लगभग 15-20 किलोमीटर उत्तर दिशा मे है।
इधर जाने के लिए गंगोलीहाट-बेरीनाग वाली सड़क के बीच में गुप्तड़ी नामक जगह पे सड़क कट जाती है।
गंगोलीहाट मुख्य बाजार से कुछ ही दूरी पर देवदार के पेड़ो के झुरमुट के बीच में स्थित है-- महाकाली मन्दिर। यह मनोकामना पूर्ण करने वाली माता महिषासुर-मर्दिनी देवी की पीठ है। हर साल चैत्र माह की अष्टमी को यहाँ विसाल मेंला लगता है। यहाँ आप बड़े बड़े देवदार के पेड़ देख सकते हैं जो बहुत ही पुराने हैं। इन ही पेड़ो के बीच में बसा है ये काली माँ का मंदिर।
गंगोलीहाट व बेरीनाग के बीच राँईआगर के पास कोटेश्वर महादेव का मंदिर है। यहाँ भी एक गुफा है जिसके भीतर शिव का मंदिर है।
भद्रकाली देवी का मन्दिर सानिउडियार से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है इस मंदिर में भी हर बार चैत्राष्टमी को भव्य मेंला लगता है। सानिउडियार वो जगह है जहां शान्डिल्य ऋषि ने तप किया था ये उनकी तपोभूंमि है।
कालीनाग मन्दिर पुगरांऊ- पट्टी की ऊंची चोटी पर स्थित है, इस चोटी को कालीनाग डाना भी कहा जाता है। दोस्तो आप विस्वास नहीं करोगे कि भगवान श्रीकृष्ण के वरदान से आज भी इस चोटी के उपर गरुड़ पंछी नहीं उड़ते। हर साल सावन- भादो के महीने नागपंचमीं को इधर मेंला लगता है।
कोटगाड़ी देवी मन्दिर पुगरांऊ-पट्टी में मदीगांव में स्थित है। कोटगाड़ी देवी अर्थात भगवती मैंया न्याय की देवी मानी जाती है, अन्याय के खिलाफ अन्तर्मन से कियी गयी पुकार की अवश्य ही सुनवाई होती है और गलती करने वाले को उसकी गलती का एहसास कराकर दण्ड दिया जाता है।
हर बार यहाँ चैत्र और कार्तिक मास की नवरात्रियों में अष्टमी को विशाल मेंला लगता है।
धरमगर पांखू से उत्तर में मूलनागजी यानि मूलनारायण का भव्य शिखर मन्दिर है। जाड़ों में तीनों महीने यहां बर्फ गीरी रहती है। इतनी उंचाई के बावजूद यहां प्राचीन जलश्रोत है। जिसे विंवर(नौला) यानि धरती के भीतर नींचे को गुफा में जलाशय कहते हैं।
शिखर पहाडी के उत्तरी घाटी में भनार श्री बंजैंण जी का मन्दिर है और दश्रिण में सनगाड़ श्री नौलिंग जी का मन्दिर है। श्री नौलिंग जी और श्री बंजैंण जी मूलनारायण जी के पुत्र थे वो दोनों भाई बहुत प्रतापी थे। शिखर पहाडी के दोनों तरफ इनके अलग अलग मन्दिर हैं। यहाँ के लोगों में इनके प्रति अगाध आस्था और वीस्वास है। कार्तिक महीने की नवरात्रि में नवमी को सनगाड़- नौलिंग जी में मेंला लगता है जो पूरे कुमांऊ मण्डल में बहुत प्रसिद्ध है।
दोस्तो इस पोस्ट में जीतने भी मैंने दर्शनीय स्थलो के बारे में बताया है, मैं उनकी जल्ध से जल्ध कम से कम एक एक फोटो जरूर लगाने की कोशिस करूंगा।
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यहाँ के पर्वत काफी ढलान लिये हुए हैं जल संचय की सम्भावनाऔं के कारण यहाँ की भूमिं उपजाऊ है । इस गंगावली इलाके का पर्यावरण सदा हरा भरा व सुरम्य रहता है। यहां की पहाड़ियां कुमांऊँ मडंल की अन्य पहाड़ियों से पक्की हैं। सड़कैं दूर दूर, पर बरसात में कम बाधित रहती हैं।
चौकोड़ी |
यहाँ का मुख्य पर्यटन स्थल चौकोड़ी है जहां कुमाऊँ मडंल विकास निगम के गेस्ट हाउस एवं प्राइवेट रिजार्टस् है, जो पर्यटको की सुख-सुभीधा को ध्यान मे रखकर बनाए गए हैं। इधर बेरीनाग और चौकोड़ी के चाय के बागान भी बहुत ही प्रसिद्ध हैं।
पाताल भुवनेश्वर |
यहाँ पाताल भुवनेश्वर की गुफा धार्मिक पर्यटन स्थलों में मुख्य है जो पिथौरागड़ जिले के गंगोलीहाट के करीब है। गंगोलीहाट एक तहसील है जो पिथौरागड़ जिले के पश्चमी भाग में स्थित है। पाताल भुवनेश्वर की गुफा इधर से लगभग 15-20 किलोमीटर उत्तर दिशा मे है।
इधर जाने के लिए गंगोलीहाट-बेरीनाग वाली सड़क के बीच में गुप्तड़ी नामक जगह पे सड़क कट जाती है।
महाकाली मन्दिर |
गंगोलीहाट व बेरीनाग के बीच राँईआगर के पास कोटेश्वर महादेव का मंदिर है। यहाँ भी एक गुफा है जिसके भीतर शिव का मंदिर है।
भद्रकाली देवी |
कालीनाग मन्दिर पुगरांऊ- पट्टी की ऊंची चोटी पर स्थित है, इस चोटी को कालीनाग डाना भी कहा जाता है। दोस्तो आप विस्वास नहीं करोगे कि भगवान श्रीकृष्ण के वरदान से आज भी इस चोटी के उपर गरुड़ पंछी नहीं उड़ते। हर साल सावन- भादो के महीने नागपंचमीं को इधर मेंला लगता है।
कोटगाड़ी देवी मन्दिर पुगरांऊ-पट्टी में मदीगांव में स्थित है। कोटगाड़ी देवी अर्थात भगवती मैंया न्याय की देवी मानी जाती है, अन्याय के खिलाफ अन्तर्मन से कियी गयी पुकार की अवश्य ही सुनवाई होती है और गलती करने वाले को उसकी गलती का एहसास कराकर दण्ड दिया जाता है।
कोटगाड़ी देवी |
धरमगर पांखू से उत्तर में मूलनागजी यानि मूलनारायण का भव्य शिखर मन्दिर है। जाड़ों में तीनों महीने यहां बर्फ गीरी रहती है। इतनी उंचाई के बावजूद यहां प्राचीन जलश्रोत है। जिसे विंवर(नौला) यानि धरती के भीतर नींचे को गुफा में जलाशय कहते हैं।
शिखर पहाडी के उत्तरी घाटी में भनार श्री बंजैंण जी का मन्दिर है और दश्रिण में सनगाड़ श्री नौलिंग जी का मन्दिर है। श्री नौलिंग जी और श्री बंजैंण जी मूलनारायण जी के पुत्र थे वो दोनों भाई बहुत प्रतापी थे। शिखर पहाडी के दोनों तरफ इनके अलग अलग मन्दिर हैं। यहाँ के लोगों में इनके प्रति अगाध आस्था और वीस्वास है। कार्तिक महीने की नवरात्रि में नवमी को सनगाड़- नौलिंग जी में मेंला लगता है जो पूरे कुमांऊ मण्डल में बहुत प्रसिद्ध है।
दोस्तो इस पोस्ट में जीतने भी मैंने दर्शनीय स्थलो के बारे में बताया है, मैं उनकी जल्ध से जल्ध कम से कम एक एक फोटो जरूर लगाने की कोशिस करूंगा।
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